नई दिल्ली : ग्लोबल मार्केट में बिकने वाली 90 से 95% हीरो की कटिंग और पॉलिशिंग भारत में होती है। अमेरिका समेत दुनियाभर के बाजारों में भारतीय लैबों में तैयार हीरे की मांग बढ रही है। बाजार से जुड़े जानकारों के मुताबिक हीरों के कारोबार को लैब में बन रहे हीरों से बहुत फायदा मिल रहा है। इन हीरों को तैयार करने में कम कार्बन फुटप्रिंट, साइज और अच्छी गुणवत्ता खरीदारों को खूब आकर्षित कर रही है। इन हीरों का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका है।
बता दें कि वर्ष 2000 में प्रयोगशाला में हीरे तैयार करने वाली महज कुछ ही कंपनियां थीं। अब 25 से अधिक कंपनियां इस कारोबार में जुटी हैं। दुनियाभर में लैब में तैयार हीरों के उत्पादन की बात करें तो इसमें भारत का योगदान लगभग 15% है। गुजरात के सूरत शहर को रफ डायमंड की कटिंग और पॉलिशिंग के कारोबार का हब माना जाता है। बीते वर्ष भारत से 25.47 अरब अमेरिकी डॉलर के कट और पॉलिश किए गए हीरों का निर्यात किया गया। भारत की जीडीपी में हीरा कारोबार का 7.5% योगदान रहा। इस वित्तीय वर्ष में भारतीय हीरा उद्योग ने 24 अरब डॉलर के कारोबार का लक्ष्य रखा है।
जेम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के उपाध्यक्ष विपुल शाह ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि भारतीय लैबों में पॉलिश कर तैयार किए गए हीरों का निर्यात बीते एक अप्रैल से शुरू हो गया है। इस वित्तीय वर्ष में इन हीरों का निर्यात दोगुना हो सकता है। बाजार के जानकारों के मुताबिक लैब में तैयार किए गए हीरे बाजार के एक छोटे से हिस्से में ही बेचे जा रहे हैं। घरेलू बाजार की बात करें तो बीते वर्ष 24 बिलियन नेचुरल हीरों को पॉलिश करके बेचा गया था। शाह ने कहा कि पॉलिश किए हुए हीरों को बेचे जाने की सबसे बड़ी वजह फैशन उद्योग में इसकी लगातार बढ़ रही डिमांड और लोगें के इसे फैशन के तौर पर पहनना है।
लैब में तैयार हीरा माइक्रोवेव में रखे कार्बन सीड से तैयार किया जाता है और एक प्लाज्मा बॉल में डालकर उसे और चमकदार बनाया जाता है। ये प्रक्रिया इन हीरों को एक हफ्ते में पहले से अधिक क्रिस्टलाइज बना देती है। जीजेईपीसी के आंकड़ों के अनुसार इस साल अप्रैल से जुलाई महीने के बीच भारतीय लैबों में तैयार हीरों का निर्यात लगभग 70% तक बढ़कर 622.7 मिलियन डॉलर हो गया है।