कुंडलियां- बूँद

(१)

एकाकी  संघर्ष से,   बूँद  बने व्यक्तित्व।

गौण रूप जो भासिता, कैसे महतु  कृतित्व।


कैसे महतु  कृतित्व, वही सबको समझाती।

रख कर मैत्री  भाव, सहज ही संगी पाती।


कह भारति कविराय, नहीं चलती चालाकी।

वचन कर्म हों एक,   बूँद  नहिँ  वह  एकाकी।


(२)

गीता भगवत घोषणा, बूँदहि  दीप्त महान।

आत्म माँहि परमात्म हैँ, गुरु दें  अंतस ज्ञान।


गुरु दें अन्तस ज्ञान,  राह सत हमें  दिखावैं।

ग्रन्धि मनस की खोल, बुराई दूर  भगावैं।


कह भारति कविराय,  भाव देते कवि प्रीता।

गुरु के छंद-विचार,  शुद्धि  मानव  हित गीता।


@ मीरा भारती,

   पटना, बिहार।