इश्क़ की बरसात

                                       

ना मज़हब ने लिहाज़ किया,

ना कोई उम्र ने बंदिशें लगाई,

ये इश्क की कैसी हवा उठी,

जो सरे-आम ही सबको नाच नचाई।।

ना किसी के रुके रुकी,

ना किसी के कहने पे हुई,

ये कैसी दिल में आग लगी,

जो सरे-आम ही सबको जला डाली।।

ना जाने क्यों तुझे सोच कर,

ना जाने क्यों तेरी ओर चली,

जो जानी मैं जगज़ाहिर हुई,

जो जाना मैं बदनाम हुई,

फिर कैसी इश्क़ की हवा उठी

जो प्रीत की धानी चुनर रंगाई।।

ना रस्मो की जाल में उलझी,

ना कसमो की डोर बंधी,

ये कैसी इश्क़ की हवा उठी,

जो बिन डोर की मैं पतंग हुई।।

ना किसी के कहने से रुकी,

ना ही अपने मन की सुनी,

ये कैसी इश्क़ की बरसात हुई,

जो बिन बदरी मैं भींग गई।।


-- लवली आनंद

मुजफ्फरपुर , बिहार