वेदनाओं के शंख नाद में,
सजीव होते अश्रु धार में,
करुण, क्रंदन विलाप में,
भेद हृदय के खोलता है।
जब मौन बोलता है।।
पलकों के अस्थिर गति नृत्यों में,
तारक के झिलमिल वृहद स्वप्नों में,
व्यथाओं के निर्झरिणी स्पंदन में,
कहीं कुछ हौले-हौले टूटता है।
जब मौन बोलता है।।
धुली, श्वेत रातों में,
निष्क्रिय, शिथिल बातों में,
दहकते, कंपित, क्रोधित अंगारों में,
भाव-विभोर अवरुद्ध सा होता है।
जब मौन बोलता है।।
शब्दों के खंडित ज्ञान में,
धैर्य के रुष्ट विश्राम में,
चिर वंदित, सघन ध्यान में,
चित्कार जोर का गूंज उठता है।
जब मौन बोलता है।।
स्वरचित एवं मौलिक
वंदना अग्रवाल 'निराली'
लखनऊ, उत्तर प्रदेश