किसी का जीवन है, कथा उपन्यास में ।
किसी का जीवन है.....व्रत उपवास में ।।
अपना तो जीवन बिता शोक सन्यास में ।
अपना तो जीवन बिता भूख विलास में ।।
जिधर भी जाऊं असर ही नहीं पड़ता ।
जो भी करूं सड़क पर ही...,
फरक नहीं पड़ता ।। -2
मेरा न तो घर है...न जाना है अन्य द्वार ।
मैंने तो भोगना है यही गुफा यही दीवार ।।
धरा मेरा वसुंधरा धरती ।
तारे गिनकर रात बितती ।।
सितारों का जीवन...उन्मुक्त आकाश में ।
अपना तो जीवन बिता शोक सन्यास में ।।
किसी का जीवन है, कथा उपन्यास में ।
किसी का जीवन है.....व्रत उपवास में ।।
छटपटा छटपटाकर...,
कई भोर हुआ प्यास में ।
मैं अति चिन्तन में हूँ...,
उनकी सुनसान आभास में ।।
क्या पता किसको नारायण कहुँ ...?
क्या पता किसको साधारण कहुँ...?? -2
हे सर्व साधारण के ईश्वर...!
कहां हो परम परमेश्वर...!!
मैं कहाँ हूँ...? तुम्हारे शिलान्यास में ।
अपना तो जीवन बिता भूख विलास में ।।
किसी का जीवन है, कथा उपन्यास में ।
किसी का जीवन है......व्रत उपवास में ।।
अपना तो जीवन बिता शोक सन्यास में ।
अपना तो जीवन बिता भूख विलास में ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'
manoj22shah@gmail.com