जेएनयू छात्रसंघ के संस्थापक, लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा सम्पूर्ण देश में चल रहे आन्दोलन का सन्चालन और नेतृत्व करने के लिए गठित छात्र युवा संघर्ष समिति के सदस्य, तीन दशक तक प्रोफेसर रहे कई पुस्तकों के लेखक, समाजसेवी, लोकतांत्रिक मूल्यों के सजग प्रहरी डाक्टर रमेश दीक्षित ने " अच्छा भी हो सकता है " की भूमिका लिखी है। उनके इस स्नेह को अर्पित है,
बूढ़े ना बिकने वाले हैं
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अच्छे हैं, मजबूत, टिकाऊ,
मेले में सजने वाले हैं।
हम जिन सबको चुने चाव से,
कोल्हू में चलने वाले हैं।
जिनके जिम्में खेत, बाग को,
खाद, बीज, पानी देना है,
वह बरसात, धूप, ठंडक से,
देह बचा चिढ़ने वाले हैं।
बन्दर मामा चाह रहे हैं,
जंगल के जीवों की रक्षा,
लेकिन शेर धरा वाला वह,
डालों पर लड़ने वाले हैं।
भारी भरकम फीस बढ़ाकर,
सबको बाँट रहे वह अवसर,
जब से उनको पता चला है,
घुरहू भी पढ़ने वाले हैं।
हर घाटों पर मुखिया जी ने,
कर डाली है चुस्त व्यवस्था,
जब से बोध हुआ है आगे,
और अधिक मरने वाले हैं।
महाराज महलों के भीतर,
दरबारी दरवाजों पर हैं,
मुख्य सड़क पर भांट खड़े हैं,
कोने में लड़ने वाले हैं।
किससे कहिएगा यह पीड़ा,
चाट रहा पूरा घर कीड़ा,
पंच कह रहे हम लफड़े में,
और नहीं पड़ने वाले हैं।
सावधान रहिए बस्ती में,
आजादी के सख्त विरोधी,
आजादी का परचम लेकर,
आजादी हरने वाले हैं।
माफ कीजिए पचहत्तर जी,
सत्तर के करीब हैं हम भी,
शेष बचे कुछ दिन को ले हम,
बूढ़े ना बिकने वाले हैं।
-धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव