जिसकी घायल रूह हो जाती है
कायल हो कलम उसकी बतियाती है
निंदिया ना आए आंखों मे ये सताती है
यादों के झरोखे तंहाई में रूलाती है।।
टूटे बिखरे टुकड़े कलम ही उठाती है
दर्द-ए दिल की पुकार लिख सुनाती है
जज़्बात संग मिल मल्हम़ लगाती है
कलम दर्द के आगे हार ही जाती है।।
दिन भर लिख कलम गुदगुदाती है
कहती भूलो भी दर्द अब ये हसाती है
जख्मी दिल कितन ये समझ न पाती है
आसां ना भुलना शायरा समझाती है।।
वीना ने खुद के बिखरे टुकड़े सजाए
यूंही ना बना दर्द-ए शायरा कोई सुनो
देखो रूहानी चोट ही बनाती है।।२।।
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र