अलकों से लिपटकर झूमे मेरा झुमका,
नुपुर झंकार लिये लटों को चूमे मेरा झुमका।
कम्पित हैं अधर मेरे,सस्मित है मन,
प्रीतम की राह निहारे,सिहरा सा है तन,
मलयज बयार संग,उलझा जाये सघन केश पाश में,
लहराये, बलखाये,शरमाये मेरा झुमका।
नभ गंगा की रजत धार सा चमके,
रश्मि से इसके मुख मेरा दमके,
जुगनू बना मेरे कानों का ये लटकन,
उर स्पंदन में नवजीवन लाये मेरा झूमका।
अनथक चलती इन सांसों को है बस उसका इंतज़ार,
अभिलाषाओं के सागर में छलकता पी का प्यार,
कितनी गहनता है,ये किसको थाह,
स्वनिल पंखों पर,पी तक पहुँचाए मेरा झुमका।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)