तन्हाइयों में गुनगुनाती रहती उसको,
सोच कभी हँस लेती
चुपचुप ही कहीं कभी रो लेती,
खयालों का मेरे एक खयाल था वो
हाँ, चेहरे का नूर था वो।
उसके बातों की गलियों में
मन घूमता रहता स्वच्छंद स्मृतियों में,
पवन वेग सी उड़ती रहती
खुद में भी मैं कहाँ रहती,
ख्वाबों का मेरे एक सुरूर था वो
हाँ, चेहरे का नूर था वो।
ढुलकते कपोलों पर अश्रु रज मोती
नींदे मेरी विस्मित हो जगती न सोती,
वक्त के हसीन लम्हों का गुरुर था वो
हाँ, चेहरे का नूर था वो।
बीते ना वो पल रूके हुए हैं
मिले ना कभी जो रूठे हुए हैं,
पास रह कर भी दूर था वो
हाँ, चेहरे का नूर था वो।
- वंदना अग्रवाल 'निराली' (स्वरचित)
लखनऊ, उत्तर प्रदेश