बाड़मेर : याद रखो इतना हमें कर्म न छोड़ेगें... इस समधुर आध्यात्मिक व प्ररेणास्पद भजन की प्रस्तुति के साथ मुनि श्री प्रशमसागर जी ने प्रवचन सभा का आगाज किया।
प्रखर प्रवचनकार मुनि श्री विवेकसागरजी म.सा. ने जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि मन के परिणाम जितने सत्विक होगें व्यक्ति उतना सत्वशाली होगा। परमात्मा की वाणी भवसागर से पार लगाने वाली, पंचमगति तक पहुंचाने वाली है, उसके लिए हमें हमारी पात्रता विकसित करनी है। जिसके हृदय में सम्यक्त्वरूपी बीज का वपन हो गया है तो वो अवश्यमेव उसे मुक्तिरूपी फल प्राप्त होकर ही रहेगा। जिनागम रूपी क्षीरसागर का उŸाराध्ययन सूत्र नवनीत है। छोटी सी वस्तु के प्रति आकर्षण, उस वस्तु के प्रति मुर्च्छा होना ही परिग्रह है। परिग्रह एक ऐसा ग्रह है, ऐसा आग्रह है जो कभी भी छूटता नही है। मुनि श्री ने अग्निशर्मा व गुणसेन के कथानक के माध्यम से भवोभव की चलने वाली वैर परम्परा के बारे में बताया।
मुनि श्री प्रशमसागरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मावलिम्बयों को संबोधित करते हुए कहा कि वस्तु के प्रति मुर्च्छा करना, आवश्यकता से अधिक वस्तु व विचारों का संग्रह करना ही परिग्रह है। जहां राग-द्वेष चल रहा है वहां सतत कर्मबंधन हो रहा है। हमें वस्तु के त्याग के साथ-साथ वस्तु के प्रति रही हुई आशक्ति, वस्तु के प्रति रहा हुआ राग का भी त्याग करना होगा।
मुनि श्री ने कहा कि पहले के जमाने में साधन-सुविधाऐं कम थी लेकिन उस समय के मनुष्यों का मन संतुलित और निर्मल था लेकिन आज के जमाने में साधन-सुविधाऐं बढ़ गई है लेकिन व्यक्ति का मन संकुचित और कुलुषित हो गया है। इच्छाऐं आकाश के समान है। इच्छाओं का कोई अंत नही है। इच्छा करना हमारे हाथ में है लेकिन इच्छाओं की पूर्ति करना हमारे हाथ में नही है। परिग्रह बढ़ेगा तो इच्छाऐं बढ़ेगी, इच्छाऐं बढ़ेगी तो टेन्शन बढ़ेगा, टेन्शन बढ़ेगा वैसे-वैसे मानसिक तनाव बढ़ता जायेगा।