"पिता के अनकहे ज़ज्बात"

मै पापा हूँ मन की बात तुमसे कह नहीं पाया, 

मुझे भी आते थे आँसू पर वो बह ना पाया। 

माँ से तुम फोन पर हर दम लंबी बातें करती थी, 

कोई भी बात हो सब तुम माँ से कहती थी,

पर तुम अपने पापा से दो मिनट बात करती थी। 


मैं पापा हूँ मन की बात तुमसे कह नहीं पाया,

मुझे भी आते थें आँसू पर वो बह नहीं पाया। 

मुझे सुनना था तुमसे तुम्हारा अतीत के पल, 

लेकिन मैं व्यस्त रह गया मेरी प्यारी बेटी, 

अपने परिवार की इच्छा पूरी करने के लिए। 


मैं पापा हूँ मन की बात तुमसे कह नहीं पाया,

मुझे भी आते थे आँसू पर वो बह नहीं पाया। 

मुझे भी होती थी बेटी तुम्हारी हर दम फिक्र, 

तेरी माँ के आँसू तो गिरते थे विदाई में, 

पर मैं अंदर ही अंदर अपने आँसू छुपा लिया।


मैं पापा हूँ मन की बात तुमसे कह नहीं पाया,

मुझे भी आते थे आँसू पर वो बह नहीं पाया। 

मैं व्यस्त हो गया बारातियों के स्वागत में, 

मैं करता रहा इंतजाम घर के पंडाल के,

रह ना जाए कोई कसर दूल्हे राजा के सत्कार में। 


मैं पापा हूँ मन की बात तुमसे कह नहीं पाया,

मुझे भी आते थे आँसू पर वो बह नहीं पाया। 

बाहर के लोगों से मिलना जुलना कम था मेरा, 

मैं कमाने निकल जाता था तेरे दहेज के लिए 

मेरे पास समय कम पड़ गया तेरे लिए। 


मैं पापा हूँ मन की बात तुमसे कह नहीं पाया

मुझे भी आते थे आँसू पर वो बह नहीं पाया। 

मुझे डर था यदि मैं नहीं कमाता तो क्या करता, 

तुझे समय देता तो तो तेरा ब्याह कैसे करता। 

इसलिए मैं जीता गया अपने कर्तव्यों के संग।


मैं पापा हूँ मन की बात तुमसे कह नहीं पाया,

मुझे भी आते थे आँसू पर वो बह नहीं पाया।

तुम बन गई थी अपनी माँ के जैसी मार्मिक,

बिल्कुल रम गई थी ममता के रंग में। 

काश! मैं भी तुम्हारी माँ जैसा होता,

तो आज मेरे अन्दर भी तेरी माँ का अक्स होता। 


स्वरचित और मौलिक रचना 

"पूजा गुप्ता"

मिर्जापुर उत्तर प्रदेश