बिन बरसे सावन बीत गया
बीत गया अषाढ़,
भादो भी न ला सका
रिमझिम कोई फुहार।
छाए गगन में रोज़ घटा
सर्द भी चला गया बयार,
कैसे भींगे मेह में अब
बारिश के नहीं असार।
कड़क धूप छाया अंबर में
सूरज को हुआ गुमान ,
तरु,विटप किसलय मुरझाए
सूखने के है कगार
खड़ी फसल सब सुख रहे हैं
बूंद- बूंद को तरस रहे हैं,
काले बादल छुप कर बैठा
खेतों में पड़ा दरार।
ताल तलैया सुख रहे हैं
पानी का स्तर गिरा पताल,
है गर्मी से जीवन अस्त-व्यस्त
सुखा रहा पांव पसार।
प्यासी चिड़िया तड़प रही है
बूंद बूंद को तरस रही है
बरसा रानी अब तो आओ
विवश किसान कर रहा गुहार।
अर्चना भारती
पटना (सतकपुर,सरकट्टी) बिहार