खोखली मर्दानगी

अदालत के बाहर भैया मजनू अपनी मुँछों पर ताव दे रहे थे। अपनी मर्दानगी को इन्हीं मूँछों से नापते-तोलते थे। इसी मर्दानगी के चक्कर में अपनी साली का खून कर बैठे। खून करने का कोई पछतावा नहीं था। पत्नी को छोड़ घर के सभी लोगों ने केस को रफा-दफा करने के लिए वकील पर दबाव बनाने लगे।

वकील ने कहा – मैं औरत थोड़ी न हूँ, जो मुझ पर अपनी मर्दानगी दिखाने की कोशिश कर रहे हो। केस खुद तुम्हारी पत्नी ने ठोका है। दम हो तो उसी के सामने अपनी मूँछों पर हाथ फेरकर दिखाओ।

मजनू ने कहा – ऐ काले कोर्ट। ज्यादा चपड़-चपड़ मत कर। तुझे अच्छी तरह से पता है कि जिस दिन तू ईमानदारी के पक्ष में केस लड़ने लगेगा उस दिन तेरी दुकान बंद हो जाएगी। बीवी-बच्चे भूखे मरने लगेंगे। तेरे जैसे बड़े खुशकिस्मत हैं कि दुनिया भर में बेईमानी, पाप, अत्याचार भरा पड़ा है जिससे तुम जैसों की दुकान चलती है। खुद बेईमानी की आँच पर पकी रोटियाँ खाने जैसा नामर्दी की बात करता है और चला है मुझे मेरी मर्दानगी सिखाने।

वकील कुछ कहना चाहता था कि मजनूँ फिर से बोल उठा – मर्दानगी न हो तो पुरुष की जिंदगी बेकार है। जीने को तो मच्छर-मक्खी भी जी लेते हैं, लेकिन वह जीना भी कोई जीना होता है। पैसा फेंककर मैं पेरोल पर अंदर-बाहर होने का खेल खेलकर ऊब चुका हूँ। वह तो मेरी मर्दानगी है कि मैं इतना सब कुछ होते हुए भी टस से मस नहीं होता। मेरी पत्नी को समझा कि वह केस वापस ले ले। वरना मेरी मर्दानगी को उबाल मारने में देर नहीं लगेगी। जो हश्र साली का हुआ है वही उसके साथ भी हो सकता है।

वकील के साथ पत्नी भी खड़ी थी। यह सब सुन वह भड़क उठी - मैं तेरी धमकियों से डरने वाली नहीं हूँ। मैं औरत हूँ औरत। जो कापुरुषों को जन्म दे सकती है, वह कापुरुषों को मार भी सकती है। मेरी बहन की हत्या करने को मर्दानगी समझते हो तो मैं थूकती तुम्हारी ऐसी मर्दानगी पर। शम्मा-परवानों के बखानो में आने वाली स्त्री डरावनी बनने में देर नहीं लगाती। उसे अबला समझने की भूल करना आ-बला जैसी होगी। औरत का औरतपन मर्दानगी पर भी भारी पड़ता है।

मजनू कुछ कहना चाहता था कि पत्नी ने चप्पल लेकर उसके गाल पर ऐसा मारा कि उसकी मूँछों पर भी निशाना पड़ गया। थोड़ी देर पहले वह जिन मूँछों पर ताव दे रहा था वही मूछें उसमें घृणा पैदा कर रही थीं।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657