जीवन का ध्येय

राह चलते किसी

सड़क के किनारे

जब कोई छोटा बच्चा

रो रहा हो भूख से..


किसी रेलवे स्टेशन पर

बैठी बिलख रही है एक माँ

घर से बेघर हुए जाने पर..


बारिश के कहर में

जब ढह गये हो

जीवन को संजोये

कई गुमसुम इमारतें..


छत जब टपक

रही हो बरसात से औ'

चूल्हा जलाने के लिए

जगह ना बची हो घर में..


कोई पथिक भटक

गया हो जब रास्ता

तूफान के आने से,

बच्चे खड़े हो पिता

के इंतजार में दरवाजे पर..


जब मुस्कान गुम हो

टूटे मन के किसी कोने में

तो कैसे लिंखू दूं मैं

प्रेम में भीगे सुख के पलों को..


सत्य लिखना ही तो

संपूर्ण संतुष्टि है

और संतुष्टि ही तो है

जीवन का परम ध्येय।


-वंदना अग्रवाल 'निराली' (स्वरचित)

लखनऊ, उत्तर प्रदेश