जिंदगी के हर मोड़ मे,
मिला हर इक सौदागर है ।
कोई तन का, कोई धन का,
अपने फन के सब बाज़ीगर है।
वफा बिकती है कौड़ियों मे,
बेवफाई का बाज़ार गर्म है।
गुनाह करके भी आंखो मे,
ना हया , ना शर्म है।।
गिला औरो से क्या करे,
जब आस्तीन मे ही अजगर है।
कोई तन का, कोई धन का,
अपने फन के सब बाज़ीगर है।
विश्वास के तराजू मे,
रिश्तो का सौदा किया हमने।
घाटे मे तो हम ही थे,
पलड़े मे भरम दिया हमने।
भरोसे का बीज पैदा न होगा,
अब तो हुयी जमीन बंजर है।
कोई तन का, कोई धन का,
अपने फन के सब बाज़ीगर है।
चारू मित्तल, मथुरा,उoप्रo