सिंह, बाज सा साहसी,
सैनिक जैसा दक्ष।
कलमकार का अर्थ है,
दुख पीड़ित का पक्ष।
दया का परचम बनकर।
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खुल्लमखुल्ला ना रहा,
ना है पर्दाफास।
नहीं आज निर्मल, विजय,
जैसा है उल्लास।
गाधि की नगरी में भी।
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उधर बिक रहा हर तरफ,
बस बापू का नाम।
इधर लोक के नाम पर,
भीड़तंत्र का जाम।
बताकर हिन्दू मुस्लिम।
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सिर रख शावक राम रज,
मन में हथियाराम।
तन कबिरा की राह पर,
मांग रहा विश्राम।
बोल जय यमुना गंगा।
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हिम्मत हो तो भेजिए,
दिल्ली को इक फैक्स।
आंटा, चावल, दाल पर,
अच्छे दिन का टैक्स।
लहू पीने की हद है।
- धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव
24 जुलाई, गाज़ीपुर।