ताउम्र तुम्हें देखने की
हसरत रही।
मेरी उल्फत की यही
जुस्तजू रही।
ठिकाने फिजाओं की तरह
बदलती रही।
पर जिंदगी की राह पर
रुकी रही।
शबे तो कई गुजरती रही
नजर मेरी सदा
माहताब पर रही।
मुलाकाते तो हजारों
से रही।
पर आपसी कशिश
कही नही रही।
गरिमा राकेश गौतम
कोटा राजस्थान