वरिष्ठ पत्रकार लोकतंत्र सेनानी आपुन के बड़े भाई श्री धीरेंद्र नाथ श्रीवास्तव की यह रचना पाकिस्तान में मचे भ्रष्टाचार पर है इसे कोई भारत के भ्रष्टाचार से जोड़ करके ना पढ़ें क्योंकि यहां तो राम राज्य है और जीरो टॉलरेंस की नीति पर सारे काम हो रहे हैं डबल इंजन की सरकारें हैं यहां ऐसा कोई करने की सोच भी नहीं सकता- शुभकामनाएं
अनिल त्रिपाठी
अध्यक्ष
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ट्रस्ट
उसे ही
मिलेगा
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पाकिस्तान के,
हर गांव में,
एक गिरोह है,
जो गांव की सेवा कर रहा है,
और तय कर रहा है,
कि रोजगार गारंटी के,
कागज पर,
किसका,
किसका नाम रहेगा,
किसको, किसको,
कितना, कितना,
दाम मिलेगा।
यही गिरोह,
तय करता है,
गांव का खड़ंजा,
कौन बजाएगा,
और नाली से,
कौन कमाएगा।
यही गिरोह,
राज्य सरकार,
केन्द्र सरकार की,
योजनाओं का लाभ भी,
गांव में,
लाभार्थी तक पहुंचाता है,
और सेवा का,
फल खाता है।
इसी तरह का,
एक गिरोह,
ब्लाक पर,
एक जिले की,
सेवा में लगा है,
सच पूछो तो,
केवल यह गिरोह ही,
यहाँ विकास का सगा है।
सहकारी संस्थाएं,
सेवा के मामले में,
थोड़ा और आगे हैं,
जो इनमें रहकर भी,
गरीब रह गए,
वह अभागे हैं।
सांसद निधि,
विधायक निधि,
सीधे सीधे,
कुबेर का खजाना है,
इसमें ईमानदारी से तय है,
किसको,
कितना पाना है।
सूबे का मन्त्री,
अपने विभाग से,
अपना हिस्सा,
आराम से पाता है।
जो इसमें अधिक के लिए,
हाथ पांव चलाता है,
और नहीं पाता है,
तो चिल्लाता है,
मुख्यमंत्री,
जनसेवा का,
विरोधी है,
नशेड़ी है,
क्रोधी है।
इसे लेकर,
टकराव न हो,
इसके लिए,
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री,
गृह मंत्री,
और उनकी मण्डली ने,
हर राज्य में,
वसूली की टीम और उसका,
स्थाई अड्डा बना दिया है,
वहाँ एक प्रभारी,
बैठा दिया है,
जो इस काम को,
चतुराई से देख रहा है,
सब कुछ,
वाजिब दाम पर,
बेच रहा है।
इसके ऊपर,
खुद बड़े सरकार हैं,
उनके पास जन सेवाओं को,
मंहगा करने के,
अधिकार हैं,
वह इस अधिकार का,
प्रयोग कर रहे हैं,
इसके बल पर,
ललकार के,
चल रहे हैं,
और लूट रहे हैं,
दिन में,
आम आदमी की जेब को,
और रात में पाजेब को।
सेवा का यह राज,
बना रहे,
इसके लिए इस सरकार ने, ईमानदारी का एक वैज्ञानिक
फार्मूला
अपनाया है,
इसके तहत,
हर फल,
सीधे खाने की जगह,
पहले मित्रों के घर,
मंगवाया है,
फिर धैर्य से खाया है।
इस धैर्य की वजह से,
गांव से लेकर,
पाकिस्तान की राजधानी तक,
ईमानदारी का परचम,
लहरा रहा है,
जिसे देखकर,
वह गरीब आदमी भी,
इतरा रहा है,
जो ईमानदारी के,
इस सांड के पीछे,
केवल इसलिए चल रहा है,
कि सांड का नीचे,
लटका हुआ दोनो फल,
आज नहीं तो कल,
पक कर गिरेगा,
तो उसे ही मिलेगा।
-धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव