जान जाती रूह तेरे साथ आके,
उसने देखा जो हमें मुस्करा के ।
वो सफर में साथ रहती थी कभी,
रुकी हुई है सितारों के पास जाके ।
उसने मुस्कुराना छोड़ दिया तबसे,
जब से लाया तन्हाई से उसे छुड़ाके ।
अंजुमन में रौनकें आई अब नई-नई,
जबसे उसने कदम रखा डेहरी आके।
उसने कहा हमने जाना कोई रूसवा नहीं,
बस, अब रहना तुम यहां सदा मुस्कराके ।
- मदन वर्मा " माणिक "
इंदौर, मध्यप्रदेश