कैसा है समां कि बारिशों में आंसुओ की नमी हो जैसे ,
कहूं क्या अब ये जिंदगी में 'जिंदगी' की कमी हो जैसे !
भटकूंगा कब तलक मैं दर-बदर सुकून की तलाश में ,
"उसके" भेजे हुए फरिश्तों में आदमीयत नहीं हो जैसे !
'छूट' जाता है बहुत कुछ मंजिलों की तरफ बढ़ते हुए ,
अबकी यूं लगा कि मेरा सब, 'रह' गया वहीं हो जैसे !
बंदोबस्त कर लिया था, यूं तो हर एक खुशी का यहां,
लेकिन बिन तुम्हारे ये मेहरबानियां भी अधूरी हों जैसे !
हां, एक उम्मीद सी मिलती है मुझे तसव्वुर में तुम्हारे ,
"मनसी" जिसको तरसी अब तक, वो यहीं हो जैसे !
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश