इस लज्जत का दाम नहीं है।
स्वादों के कितने ही रंग हैं
इनके जलवों से सब दंग हैं।
चौसा और दशहरी, लंगड़ा
इनका तो रुतबा है तगड़ा।
अलफांसो, देशी औ गोला,
देख इन्हें सबका मन डोला।
फजली हो या तोतापारी
आम सभी स्वादों पर भारी।
मुंह में जाते ही यह घुलता,
अमृत के जैसा सुख मिलता।
मलदहिया या मिले सफेदा,
आमों ने सबका मन भेदा।
भले तोंद बढ़ जाए थोड़ी,
टूटे नहीं आम से जोड़ी।
वजन बढ़ा कम हो जाएगा।
आम नहीं जाकर आएगा।
नहीं जायका ऐसा घुलना,
आम साल बीते फिर मिलना।
जब तक हैं ये छककर आओ।
आमों का शुभ पर्व मनाओ।।
©® डॉ0श्वेता सिंह गौर
हरदोई, उत्तर प्रदेश