शुक्र-ए-रबा मैं कलाकार हूं, वरना गम ने मुझे था डुबो दिया।
जब-जब दर्द उठा सीने से, कई गज़लों ने जन्म लिया,
जिंदा हूं उन्हीं की बदौलत, वरना जिंदगी से हाथ था धो दिया।
सीने की चिंगारियों ने, मेरी कला को इतना तपा दिया,
ठंडी आहों से टकराकर, लाखों नैनों को भिगो दिया।
करूं शिकायत या शुक्रिया, उनका - जिन्होंने दर्द दिया,
मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया, वरना अपना वजूद तो मैंने था खो दिया।
दर्द को तोहफा समझ के मैंने दर्द को वह अंजाम दिया,
दर्द से डरने वाला जहां, दर्द का ही दीवाना हो दिया।
एक सिर्फ मैं नहीं, जिसने आंसुओं को साज़ दिया,
अमर हर शायर, जिसके दिल में, दर्द का जलता हो दिया।
ऐ कला तुझको सलाम - मुझको नया जीवन दिया,
दर्द ने लेकर रूप तेरा, मुझको शोहरत में भिगो दिया।
रचयिता - सलोनी चावला