संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में विवादों में आई सहायक आचार्य भर्ती परीक्षा के परिणाम आखिरकार निरस्त हो गए। शिक्षकों, अभ्यर्थियों के विरोध और राजभवन से जवाबतलब होने के बाद कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी बैकफुट पर आ गए। रविवार को राजभवन से लौटे कुलपति ने अध्यापक परिषद के साथ मैराथन बैठक के बाद परीक्षा परिणाम रद्द करने का निर्णय लिया। भर्ती परीक्षा अब नए सिरे से विज्ञापित होगी या पुराने विज्ञापन पर ही नई परीक्षा कराई जाएगी, इसके लिए राजभवन के आदेश का इंतजार हो रहा है।
विश्वविद्यालय में 56 सहायक आचार्य और 14 सहायक पुस्तकाध्यक्ष पदों के लिए 29 मई को परीक्षा हुई थी। परीक्षा के बाद पहले दिन से ही अभ्यर्थियों ने बिना अनुक्रमांक या कोड की ओएमआर शीट पर आपत्ति जाहिर की थी। सभी पक्षों की पड़ताल करते हुए परीक्षा प्रक्रिया में हुई गड़बड़ियां भी सामने रखीं। विश्वविद्यालय के अध्यापक परिषद ने भी इस धांधली पर कुलपति का खुलकर विरोध करते हुए राजभवन से शिकायत की। हर दिन मामले में नए खुलासे हुए। गत दो जून को राज्य विश्वविद्यालयों की बैठक में कुलाधिपति ने इन गड़बड़ियों पर सवाल पूछे और सभी प्रपत्रों के साथ कुलपति को शनिवार को राजभवन तलब किया।
रविवार को राजभवन से लौटे कुलपति ने दोपहर के वक्त अध्यापक परिषद की बैठक बुलाई। कुलपति कार्यालय में दोपहर ढाई बजे से शाम पांच बजे तक चली इस बैठक में कई बिंदुओं पर चर्चा हुई। कुलपति ने भर्ती परीक्षा परिणाम को तत्काल निरस्त करने की सूचना दी। कुछ ही देर में इस संबंध में आदेश भी जारी हो गया। अध्यापक परिषद के सदस्यों ने इस फैसले पर संतोष जताया है।
संस्कृत विश्वविद्यालय में नियुक्ति प्रक्रिया का विरोध करने वालों को हर तरह से शांत कराने की कोशिश की गई है। अध्यापक परिषद के साथ विरोध में आए विश्वविद्यालय के एक अधिकारी भी बाद में ‘संधि प्रस्तावक’ की भूमिका में आ गए थे। इस क्रम में आननफानन में आपत्तियों के निस्तारण के लिए समिति गठित की गई और विरोध करने वाले अध्यापक परिषद के अध्यक्ष को ही इसकी कमान दे दी गई। हालांकि संस्कृत की शुचिता और छात्रों के भविष्य को देखते हुए अध्यापक परिषद पूरी प्रक्रिया की जांच की मांग पर अड़ा रहा। परीक्षा परिणाम निरस्त होने के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यहीं मामले का पटाक्षेप हो जाएगा या दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी।