नभ पर रवि हिटलर है,देता आदेश।
ताप नित बरसता है,देने को क्लेश।।
(०२)
दिन पर दिन देखो तो,बढ़ता है ताप।
लगता है मौसम अब,कोई अभिशाप ।
(०३)
लपट-लू विचरते हैं,खुलकर के आज।
बस्ती में डर बैठा,गर्मी का राज।
(०४)
हरियाली सूख गई,उजड़े हैं बाग़।
खग भी तो तपकर के,गये कहीं भाग।।
(०५)
सता रही गर्मी अब,निकल रहे प्राण।
आतप ने मारे हैं,तीखे तो बाण।।
(०६)
कुंये सभी सूख गये,नीर का अभाव।
सरिता में भी नहिं अब,पहले-सा ताव।।
(०७)
गर्मी की सत्ता है,सूरज का ध्वंस।
मौसम तो बना हुआ,मानो हो कंस।।
(०८)
ज़ोर से सताते हैं,मई और जून।
दुपहरी में सड़क पर,बिलकुल हो सून।।
(०९)
सर्दी बिलखती आज,हँसता है ताप।
नीर उड़ता जा रहा,बनकर के भाप।।
(१०)
किरणों ने गाया है,आतंकी गीत।
मानव हुआ पराजित,सूर्य गया जीत।।
(११)
बहता रोज़ पसीना,उड़ती है धूल।
देखो तो बाग़ों के,सूख गये फूल।।
(१२)
बिजली के यंत्रों का,बढ़ा आज मान।
ठंडे ने पा ली है,बेहिसाब शान।।
(१३)
तप रहे हैं नगर अब,तपे आज गाँव।
मिलती नहिं दूर-दूर,देखो तो छाँव।।
(१४)
कोने में पड़े कहीं,आज तो लिहाफ।
ठंडे की विजय हुई,दिखता है साफ।।
(१५)
सूरज है गुस्से में,बरसाता आग।
डँसता है हम हमको,मौसम का नाग।।
(१६)
गरमी के मौसम में,बढ़ती है धूप।
घबराते हैं प्राणी, भय खाते भूप।।
-प्रो.शरद नारायण खरे