पापा का मेरे है सरल स्वभाव
बचपन में थे कई अभाव
पर उन्होनें न पड़ने दिया
हम पर कोई प्रभाव
समय-समय पर मार्गदर्शक बने वो
विषम परिस्थितियों से तनिक न डरे वो
किराये के मकां में बीता दी सारी जिंदगी
लेकिन शिक्षा में हमारे न आने दी कोई कमी
न पढ़ पाये थे वो अधिक
पर समझते थे शिक्षा का मोल
हम दोनों भाई बहनों को
पढ़ाने में लगाया सारा जोर
हमारी छोटी-छोटी कामयाबी पर
उपहार हमें दिया करते थे
जन्मदिन पर भी हमारे
मिठाई लाना नहीं भूलते थे
उनके ही त्याग का नतीजा,आज हम पैरों पर खड़े हैं
भविष्य की खातिर हमने,सुखद स्वप्न गढ़े हैं
हमेशा हमें प्रोत्साहित किया,आगे बढ़ने का साहस दिया
गलतियों को हमारी माफ किया,उड़ने को हमें खुला आकाश दिया
पिताजी,हमारे सर पर सदा आपका हाथ रहे
जीवनपर्यन्त आपका साथ रहे
आपके ऋण से उऋण न हो पायेंगे
प्रतिदिन आपके चरणों में शीश झुकायेंगे।।
सोनल सिंह"सोनू"
कोलिहापुरी दुर्ग छ ग