मुझे पढ़ना नही आता,
मुझे लिखना नही आता।
हमारे पाँव छोटे हैं,
अभी चलना नही आता।
मैं अपनी माँ के पल्लू से,
अभी दिन रात लिपटा हूँ।
समझता हूँ मैं सारी बात,
पर कहना नही आता।
सभी लगते मुझे प्यारे,
सभी के संग रहता हूँ।
कभी हंसता बहुत हूँ मैं,
कभी रोता बहुत हूँ मैं।
मैं निज हाथों को अपने,
मुख में दिन रात रखता हूँ।
बहन कितना भी समझाये,
पर मैं कहाँ समझता हूँ।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
नाम:- प्रभात गौर
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश