इश्क़ में हो अगर इश्क़ सा कुछ..

इश्क में गर हो इश्क सा कुछ तो पहचान लीजिए

"रूह से रूह का मिलन" है, बस पहचान लीजिए !!


हां, बेशक नहीं है रास्ता , सिवाय इक "इंतज़ार" के

चलेंगे साथ साथ हम फलक तक , ये जान लीजिए !!


नहीं था आसान यूं इश्क़ में , "इक रूह" का हो जाना ,

क्या पहला..क्या आखिरी, क्यों कर ये विचार कीजिये !!


क्या ही कहूं , वो जो जिस्म को ही इश्क़ समझ बैठे हैं,

न कहो कुछ हमें , सिर्फ एहसासों की जुबान लीजिए !!


क्या पता अजनबी से ये रास्ते , हमें ले जाएंगे किधर,

चलना ही तो है, डर कैसा, "मनसी"अब ठान लीजिए !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ , उत्तर प्रदेश