चलें प्रकृति की ओर

( 1 )

वो जो एक पौधा..

देख रहे हो न

..सडक के बांयी ओर

..उग आया है स्वतः ही ,

कभी थोड़ा कुचला गया

..कदमों से ,

..फिर संभला ,

कभी कुछ.. सूखा ,

..थोड़ा हरा हुआ,

बस यूं ही क्रम चलता रहा..

वह..

बीज बनता रहा बार-बार

औऱ ,

बढाता रहा भागीदारी

अपने हिस्से की..

पर्यावरण सुधारने में !!


( 2 )

मकानों के जंगल में

"घर" कहीं गुम हैं ,

इंसान चुप है

पर, शोर बहुत है

..संवेदनाओं में ,

गलियां सुनसान..

सडकें भरी हुई भीड से

औऱ..

रास्तें हैं कि

..भटका रहे हैं हमको !!


( 3 )

ये कुछ सूखे-कुछ हरे पेड

कब तक पहरा देंगें पर्यावरण का ,

कब तक संभाल सकेगें

..मिट्टी को ,

औऱ..

कितनें बादल बना पाएंगे ?

कभी तो सूख ही जाएंगे न ??


( 4)

मेरी छोटी सी कोशिश

एक दिन..

बचा लेगी कुछ बूंदें

...बारिश की,

छोटा सा

..एक टुकड़ा बादल का,

कोई छोटी सी नदी..

या थोड़ा सा समुद्र..

तब ,

तुम्हें भी कुछ करना होगा ?

भला एक छोटा सा बादल

..बरसेगा कब तक ?

कब तक !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ , उत्तर प्रदेश