छत पर बैठी अकेली
आखों में आसूं लिए
शिकायत भरी नज़रों से
चांद को देख रही
उदास मन से पुछा रही
कब डूबोगे तुम
सुबह कुछ रोटी की आस मिले
आज खाली पेट हूं
काश आज होता चुनाव
घर पर आज अनाज होता
रोटी की महक होती
चारों तरफ़ ख़ुशी होती
क्यों होता हर पांच साल में चुनाव
मै तो चाहती हर महीने करा दो
कोई गरीब ठंड से न मारे
न ही कोई खाली पेट सोए
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश