नसीहत

ईतने सालों से बीजेपी की समर्थक रहते हुए कुछ बातें जरूर ध्यान में आती हैं।इतने साल गुजरात में जीतने वाली बीजेपी को दूसरे राज्यों में भी अपनी जीत बरकरार रखने की खास जरूरत हैं।अभी अभी पांच ने से चार राज्यों में जीतने वाली भाजपा को चार राज्यों को जीतने से जो क्रेडिट मिला उससे एक में हारने से ज्यादा ही डिसक्रेडिट मिलता हैं। स्ट्रैटेजिकली देखें तो पंजाब बॉर्डर में आया हुआ एक अहम राज्य हैं,पाकिस्तान से उसकी बॉर्डर जुड़ी होने की वजह से वहां कोई भी खुराफत हो सकती हैं इसलिए पंजाब में बीजेपी का होना एक आवश्यक कदम गिना जाएगा।

 लेकिन जो प्राप्त नहीं हुआ उसे तो भविष्य में देखा जायेगा।

  लेकिन बिहार में नीतीश कुमार का दूसरे दलों के साथ हो रहे व्यवहार से थोड़ी बातें चिंताजनक हो जाती हैं,पहले भी नितिशजी को सेंटर में आना था( प्रधानमंत्री बन ने का उनका ख्वाब जग जाहिर हैं ही) लेकिन उनको कोई मौका नहीं दिया गया और उसके बाद भी बीजेपी के साथ उनके मतभेद बाहर आने लगे लेकिन गठबंधन टीका रहा।

नीतीश कुमार का अपने दल पर भी इतना कंट्रोल नहीं है दो तीन खेमों में बंटा हुआ दल हैं तो नीतीश जी को थोड़ा संभल के चलाना पड़ता हैं।लेकिन जो इफ्तार पार्टी में रिश्ते बन रहे थे वह बीजेपी को कुछ तो मैसेज दे रहे थे।क्योंकि कुछ साल पहले राबड़ी देवी के जमाने में उनकी no entry हो गई थी।

 पासवानजी के निधन के बाद थोड़ा फूट होल्ड कम हुआ हैं,जैसे चिराग पासवान से मिले रिस्पॉन्स और बीजेपी से रिश्ते खत्म कर देना आदि काफी कुछ बताता हैं हालाकि उसमे नुकसान में तो चिराग पासवान ही रहें हैं।ऐसे तेजी से उनके राजनैतिक विकल्प खतम हो रहे हैं या तेजस्वी यादव से कुछ रिश्ते बनायेंगे ये तो भविष्य ही बताएगा।

वैसे नीतीश की वफादारी के प्रति हमेशा ही शकमंद रहने वाला हिसाब रहा हैं।इसी लिए उन्हें केंद्र में लाना कितना हितावह रहेगा ये भी प्रश्न हैं। अगर ये उप राष्ट्रपति बने तो बिहार में बीजेपी का मुख्य मंत्री बनने के द्वार खुल सकते हैं।

  वैसे तो 20 परसेंट ही सीटें होने के बावजूद नीतीश कुमार मुख्य मंत्री बने हुए हैं फिर भी उनकी ऊंची उड़ान हमेशा से रही हैं।जब मोदी जी गुजरात के मुख्य मंत्री थे तब तो वे उनसे मंच साझा करने से भी परहेज रखते थे।लेकिन अब उसी दल से नाता रख मुख्य मंत्री की खुर्सी संभाले हुए हैं।2019 में केंद्र में 4 मंत्रियों के लिए खुर्सी मांग ने वाले नीतीश अभी क्या रवैया अपनाएंगे ये प्रश्न हैं। आर सी पी सिंघ का राज्य सभा से वापसी ने भी कुछ संकेत मिल रहे हैं।नीतीश कुमार की राजनैतिक चाल हमेशा से संदिग्ध रही हैं जब एन डी ए के सदस्य होते हुए भी राष्ट्र पति पद के लिए उन्होंने यू पी ए के प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया था और आरजेडी के साथ होते हुए भी उन्होंने रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था तो अब उनकी क्या रणनीति रहेगी ये सोचने वाली बात हैं।क्या बीजेपी के दूसरे दो पक्षों – अकाली दल और शिवसेना – के निकलने से बीजेपी+ कुछ छोटे दलों का सपोर्ट ही रह गया ऐसा मान कर कुछ और शतरंज बिछा रहे हैं अपने लिए, केंद्र में कोई उचित जगह की तलाश में हैं? वैसे आजकल उनकी  नीति शतरंज के घोड़े या उंट सी दिख रही हैं।क्या उनकी नजर जुलाई में आ रहे राष्ट्रपति चुनाव की और हैं क्या?

    वैसे भी दो बार की खता खाई हुई बीजेपी को इस बारे में कुछ चिंतित होना चाहिए या एनडीए में सिर्फ बीजेपी रह जाने से भी काम चल जायेगा?

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद