तरु

तरु की छाया अब कहा पाऊं

फूलों की महक अब कहा से लाऊं ,

मीठे फल शुद्ध हवा अब कहा मिलती,

पेड़ पौधे पर चहकते पंछी कहा आते

थके राहगीर अब कहां सुस्ताते

भुख में  कंद मूल किसको भाएं

श्वान भादौ अब कहा मिलते

पंछियों को आवास योजना कोन दिलाता

हरे भरे लहलहाते तरु को काट

प्राण वायु अब शीशी में मिलती

प्रतिभा जैन

टीकमगढ़ मध्य प्रदेश