रिश्ता हो कोई भी चाहे,
प्रेम से परिपूर्ण हो।
निभे रिश्ता दूर तक,
अपनेपन से भरपूर हो।
प्रेम से सींचते रहो,
रिश्तो को हमेशा।
सुख दुख में काम आओ,
यह है अपनेपन की भाषा।
समय कहांँ आजकल किसी को,
समझो तुम यह बात जरा।
तुम भी कमाते हो हम भी कमाते हैं,
फुर्सत कहांँ किसी को भला।
फोन कर पूछ लो हाल-चाल,
खुश है इसमें सब लोग आज।
अपनेपन को ढूंढ रहे हो,
तुम तो बोलो यहांँ वहांँ।
रिश्ते हो खून के यहांँ,
या हो दोस्ती से बने।
टिकते हैं त्याग से रिश्ते,
अपनापन फिर मिले यहांँ।
सुख में लगे हैं रिश्ता अपना
आगे बढ़कर साथ निभाए।
दुख में जो हाथ बढ़ाएं,
वही रिश्ता अपना कहलाए।
पहचान है रिश्तो की यह,
देखो वक्त पर होती है।
स्वार्थ भरा ना रिश्ता हो,
अपनापन उसमें प्यारा हो।
रिश्तो में अपनेपन की मिठास,
रिश्ता दिल को सदा भाता।
चाची ,मामी, मासी, ताई,
रिश्ता प्यारा वह कहलाता।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा