पूनम की खिली चाँदनी,
शीतलता चहुंओर भरे हुए।
राका का चंदा सी लगतीं,
मन को ठंडा किए हुए।
कोई चकोर, निहारे जब तुमको,
वह आभा में, तुम्हारी खो जाता है।
वियोग में तुम्हारे,पाने को तुमको,
अग्नि में अपनी,चोंच को मार जाता है।
घने तरूवर से ढकी हुई,
एक जमीं से लगती हो।
साये में तुम्हारे जो विश्रामित हो,
वह पथिक स्वयं पर घमंड करे।
रागों में तुम प्रेम राग हो,
धुन मुरली सी बजती हो।
गीत प्रेम के गाती जब तुम,
हृदय गति सी लगती तुम।
बनो प्रेयसि पुनः मेरी तुम,
मेरे पतझड़ वाले जीवन में।
बन मधुमास पुनः सींच दो,
हरा भरा कर दो तुम मेरे उपवन को।
तुम ही धुरी हो घर की मेरे,
जिस पर घूम रहे हैं बच्चे मेरे।
परिक्रमा तुम्हारी लगा रहे हैं।
हम सब मिलकर अनगिनत फेरे,
स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित
रचना लेखक हरिओम शर्मा, दिल्ली।