भीषण गर्मी सता रही है।
हाल बुरा है रुला रही है।।
आसमान से बरस रहे दिन में अंगारे।
झुलस रहा है तन बदन, कहते सारे।।
प्रकृति प्रेमी प्रकति का इशारा समझ रहे हैं।
धरा से जंगल कटते कटते सिमट रहे हैं।।
हरी भरी धरती का वैभव लोप बढ़ा है।
जिसके कारण प्रकृति का प्रकोप बढ़ा है।।
आओ मिलकर लें संकल्प, पेड़ लगाएं।
हरी भरी धरती जीवन खुशहाल बनाएं।।
वृक्ष हमारे मानसून के चतुर चितेरे।
सुखद स्वास्थ्य के सजग पहरुए, तेरे मेरे।।
जबसे मानव किया प्रकृति संग छेड़छाड़।
कहीं पे सूखा कहीं प्रलय ढा रही बाढ़।।
गौरीशंकर पाण्डेय सरस