कितना प्यारा है यह जहान,
सुबह की रौनक, सुनहरी सी धूप,
चमकाए यह हर एक स्वरूप,
कोयल की मीठी धुन,
पंछियों का चहचहाना सुन,
बारिश का टिप टिप बरसना,
सभी का खिलखिलाते हुए हंसना,
खेत खलियान, पेड़, पौधे और नदिया,
सागर, फूल, फल, पत्ते और यह वादियां,
प्यारी सी महक इस प्रकृति से जो मिले,
सबको महसूस कर कर, हम और जिले,
यूं हवाओं का चलना,
सागर का बहना,
सुबह सवेरे उठकर, वातावरण से मिलना,
तितलियों को देखना, यू कलियों का खिलना,
सोते हुए चांद और सितारों को देखना,
बरसात में भुट्टो का सेखना,
बगीचे में टहलना,पहाड़ों पर चढ़ना,
चलते चलते, वातावरण की खूबसूरती को देखकर ठहरना,
बरसात में मिट्टी की खुशबू,
पंछियों से गुफ्तगू,
नीला आसमान, कड़कती बिजली, गरजते बादल,
ले आती है बचपन वापस, कर देती है कायल,
पेड़ के नीचे की छाया, और फल फूल की सुगंध,
यह प्रकृति से तो है, हमारा गहरा संबंध!
यह प्रकृति से तो है, हमारा गहरा संबंध!
डॉ. माध्वी बोरसे!
राजस्थान (रावतभाटा)