बच्चों का हृदय जैसे कोमल तरु वन,
परिमल मन जैसे स्निग्ध चंदन,
गीली माटी सा उनका अन्तर्मन,
माँ के लाड़ ने जब भी बिगाड़ा,
पापा ने सम्बल बनकर सम्भाला।
दिखता कम महसूस ज़्यादा
होता आपका प्यार पापा ...
परिवार की रौनक है आपसे,
हम सबके स्वाभिमान हैं पापा।
घड़ी कितनी भी मुश्किल आयी,
हौसलों में आपके न कमी पायी ।
बिन जताये हर मुश्किल पार किया ,
मेरे आदर्श मेरे अभिमान हैं पापा...
चूल्हे चौके से दूर रखा ,
किताबों को बनाया मेरा सखा...
मेरी आँखों में अपने सपने निहारते ...
कभी डांट तो कभी प्यार से मुझे पढ़ाते...
इससे ज़्यादा क्या लिखूँ??
मेरे हर्फ़ हर्फ़ का ज्ञान हैं पापा...
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश