टूट कर दिल दुआ नहीं देता
मुख़्तलिफ़ सुकून मिलता हो
खेल दिल का वफ़ा नहीं देता
दर्द को जी के तुम ज़रा देखो
शाद या ज़ख़्म क्या नहीं देता
रोग हो पाप का लगा जब भी
तब दुआ भी शिफ़ा नहीं देता
बैठे है वो ख़फ़ीफ़ कुर्सी पे
जिनको आलम सज़ा नहीं देता
रातभर नींद में उसे ढूंढूं
ख़्वाब उसका पता नहीं देता
मौत के बाद मिल सकुं उससे
मौका ऐसा ख़ुदा नहीं देता
प्रज्ञा देवले✍️
महेश्वर जिला- खरगोन, मध्यप्रदेश