लेकिन... घर का मालिक कुछ कहने ही वाला था कि मंत्री जी का पीए धमकाते हुए बोला – लेकिन-वेकिन करना छोड़ो और जी तोड़ मेहनत करो मंत्री जी की खातिरदारी करने में। कोई कसर नहीं रहनी चाहिए।
पीए मुड़ने ही वाला था कि उसे कुछ याद आया। उसने मकान मालिक से पूछा कि मंत्री जी के बैठने के लिए व्यवस्था तो है न? यह सुन मालिक की आंखों में प्रश्न चिन्ह झलकने लगा। पीए ने डांटते हुए कहा अरे कमाल के आदमी हो। तुम आदमी हो या कि पैजामा? बैठने के लायक कोई व्यवस्था तक नहीं है। थूकता हूँ ऐसी जिंदगी पर। शर्म आनी चाहिए तुम्हें जो एक कुर्सी तक घर में नहीं रखते। किसी बगल वाले से कुर्सी या खटिया मांग लेना समझे।
तभी पीए को मंत्री जी का फोन आ गया। उन्होंने न जाने क्या बड़बड़ा कि पीए की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई। पीए ने घर के बाहर नजर दौड़ाई तो देखा घर से सटकर नाला बह रहा था। नाले से इतनी बदबू आ रही थी कि पीए ने तुरंत दस्ती निकालकर अपनी नाक को धर दबोचा। उसने देखा कि वहीं पास में कूड़ा-कचरे का ढेर लगा हुआ है। उसका माथा ठनका। वह मालिक को गुर्राई आँखों से देखते हुए कहने लगा, यह सब क्या है? साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए न! भला ऐसी जगह पर इंसान कैसे रह सकता है? जानवर भी अपने आसपास की जगह को साफ-सुथरा रखते हैं!
मालिक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, हे माई-बाप! हमने सफाई कर्मचारियों से इसके बारे में शिकायत की थी। वे हैं कि केवल बड़े लोगों के इलाकों में साफ-सफाई करते हैं। अपना हफ्ता-पानी लेते हैं और चले जाते हैं। यहां कोई पलट कर देखता भी नहीं है। मालिक की मां कुछ कहना चाहती थी कि जोर-जोर से खांसने लगी। यह देख पीए से रहा नहीं गया। उसने कहा, उनकी खांसी बंद करवाओ। मालिक ने कहा, इन्हें टीबी की बीमारी है। उम्र साठ से ज्यादा हो गई है। पेंशन तक नहीं मिलता। न ही मुझे ऋणमाफी योजना का लाभ। पिछले साल ही मेरे भैया ने साहूकार से लिये कर्जे के एवज में फांसी लगा ली थी।
पीए कूढ़ते हुए स्थानीय नेता को घूरने लगा। स्थानीय नेता ने कहा, इस घर के सभी सदस्य हमारी पार्टी के खिलाफ वोट देते आए हैं। इसीलिए इन्हें सभी योजनाओं के लाभ से वंचित रखा गया है। मंत्री जी ने भी बेवजह इस घर को चुना है। हमसे पूछ लेते तो एक से एक बढ़िया घर दिखा देते।
पीए ने माथा पीटते हुए कहा, वह तो मंत्री जी को किसी ने चुनौती दे दी थी कि आपके क्षेत्र में किसी भी मतदाता का घर ले लीजिए और बताइए कि योजनाओं का लाभ कहां तक पहुंचा है। उनकी किस्मत में जा-जाकर यही घर लिखा था। जल्दी से कुछ व्यवस्था करनी होगी। वरना नाक कटने से कोई नहीं बचा सकता।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’