नदिया मंथन

नदिया कहती सीख लो, सबकी हरना प्यास |

खुशियाँ मिलती धैर्य से, बढ़ती जाये आस ||

बहती नदिया वेग से, कलकल करती धार |

गंगा यमुना पूज्य है, वसुधा पर अवतार ||

नदिया तपती धूप में, रखती शीतल धार |

मानव सीखे प्रेम जो, बने अलौकिक सार ||

नदिया धोती पाप सब, बहती निर्मल धार |

मानव कर ले स्नान जो,होता भव से पार ||

नदिया बहती आज जो, वसुधा करती नाज |

इसमें रहते जीव सब, सुखदा समता साज ||

नदिया सम है मातु सी,  करती सबको प्यार |

धुलती सबके पाप है,  करती भव से पार ||

नदिया सलिला सौम्य है, करती दुनिया मान |

रखती वसुधा तृप्त है, उपजे अन्न व धान ||

नदिया सलिला सौम्य है, करती दुनिया मान |

रखती वसुधा तृप्त है, उपजे अन्न व धान ||

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कवयित्री 

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश