पीर को भी लिखों

लिख सको तुम अगर 

पीर को भी लिखो, 

दे  दिखाई  अगर  

नीर को भी  लिखो।

प्रेम  की बात हो ,

 नेह भी साथ हो, 

पोंछ कर अश्रु उनके,

धीर को भी लिखो।

 सिसकियां भी सुनो, 

हिचकियाँ भी गुनो, 

किस तरह लुट गई, 

चीर को भी लिखो।

बेटियां   बोझ   होती  

नहीं   बाप  पर, 

फिर विकल क्यों हुआ ,

तीर को भी लिखो।

चांदनी   रात  है, यह  

बड़ी  बात  है, 

कब तलक है यहाँ,

सीर को भी लिखो।

चाशनी  से  पगी  

बात  भाती बहुत,

मिल सके मन अगर,

हीर को भी लिखो।

भूख से बिलबिलाता 

रहा रात भर, 

मिल सकी जो नहीं,

खीर को भी लिखो।


अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर ,उ०प्र०