क्या-क्या नहीं करता?
इंट पाथता,मिट्टी ढोता,
मजदूरी करता,पत्थर काटता,
कपड़े सिलता,बरतन मांजता
आदि-आदि।
दुधमुहे बच्चे को पीठ पर बांधे,
गोद में उठाए,जमीन पर लिटाकर,
अनेकों काम करतीं औरतें
फिर भी खिलखिलाती रहती हैं।
माथे से टपकता पसीना उनके
परिश्रम की कहानी कहता है।
खोमचे लगाने वाला,
चना जोर गरम बेचने वाला भी
रात्रि में खर्राटे मारकर सोता है।
ठेला लगाए, गली-गली घूमते हुए
आवाज देकर तरह -तरह से
बतिया कर सौदा बेंचता है।
रिक्शा चलाते हुए,
खून-पसीना एक
करने वाले से
मोल-तोल करती सवारी
को भी अपनी मेहनत से
पसीजाने वाला
मजबूर से मजबूर
व्यक्ति भी अपने
परिश्रम पर भरोसा करता है।
अनेक कठिनाइयों से
गुजरते हुए भी,
अपने परिवार को
गर्व से पालता है।
अपने परिश्रम से संतुष्ट रहता है
क्योंकि श्रम ही उनकी पूंजी है।
श्रम से ही उन्नत
जीवन के सपने हैं,
श्रम से ही सुंदर स्वपन सलोने हैं।
अनुपम चतुर्वेदी,सन्त कबीर नगर