ग़ज़ल: "इंसानियत का कद बड़ा है "

नहीं कहते की हर इंसां बुरा है

मगर इंसानियत का कद बड़ा है


मुहब्बत में हमें जो कुछ मिला है

हमारी ही वफ़ाओं का सिला है


अगर आँसू मिले उनसे मुसलसल

कहें तो दिल लगाने की सज़ा है


लिखा उसमें नया आग़ाज़ दिन का

नसीम-ए-सुब्ह को मैंने पढ़ा है


कहीं ज़ख़्मों को सीकर दर्द पीकर

सुनाएँ दिल वही नग़्मा-सरा है


यही हैं इश्क़ के आसार ग़ालिब

पता चलता नहीं क्या ढूँढता है


बिछड़ता है न मिलता है वो मुझसे

मेरे दिलबर की ये कैसी अदा है


प्रज्ञा देवले✍️