2-जून की रोटी


बहुत  परिश्रम  के  बाद  होती  है  इसकी  खेती।

जब खून पसीना एक हुआ तो, लहराती  है खेती।

क्या बताऊँ तुझको यारों,कैसे होती है इसकी खेती।

आसानी  से  मिलती  नही  2-जून  की  रोटी।

ना  पेपर  आखबारों  में ,ना  शाही  दरबारों   में,

और मिडिया के अधिकारों में बात कभी ना होती।

क्या  बताऊँ यारों  कैसे  होती  है  इसकी  खेती।

आसानी   से  मिलती  2 -जून  की  रोटी ।

मिट जाती हैं नस्लें इसमे,खाने और खिलाने में।

हाथ  छाले  पड़ते  है, हर  रोज  इसे  जुटाने  में।

इसके  पीछे  जीवन  अपनी  हस्ती  और  रोती।

आसानी   से  मिलती नही  दो  जून  की  रोटी।

बहुत जगह ऐसे भी ,शर्मिन्दा होना पड़ता है।

डाॅट मार तो पड़ती है, साथ  में रोना पड़ता है।

हर जीवन  के हिस्से का सफल काम ये होती।

आसानी से  मिलती  नही  दो जून  की  रोटी।

कड़ी धूप और बारिश में,कठिन परिश्रम  करना होता है।

फिर भी खेती प्राकृति के गोद में, राम भरोसे होता है।

कभी  बांड़ तो  कभी  सुखा  , ऊंड़ा  ले जाती  खेती। 

आसानी  से   मिलती  नही  दो  जून  की  रोटी।   

धन्यवाद......

        @अली अंसारी✍

             कटहरा टोला 

            अफज़ल नगर 

           जिला-महराजगंज 

           उत्तर प्रदेश