बने रहना सेवक के लिए आवश्यक है। हालांकि यह सूक्ष्म मार्ग है जरा सा भी मन में अहंकार आया कि सबकी करे कराऐ पर उसी क्षण पानी फिर जाता है। यह जितनी नम्रता श्रद्धा भावना से जो सेवक सद्गुरु की निष्काम भाव से सेवा करेगा उसको इतनी कृपा दृष्टि मिलती हैं। वह उस प्रेमी पर दयालुता करके उसे अपना रूप भी बना लेते हैं मैं इसी संदर्भ में एक कहानी सुनाना चाहूंगी।
किसी नगर में एक निर्धन व्यक्ति एक सेठ के यहां निस्वार्थ भावना से सफाई क्या करता था, यही उसका कार्य था इस प्रकार झाड़ू लगाते हुए उसको वर्षों बीत गए उधर धनी पुरुष भी उसके साथ व्यवहार में नम्रता से बहुत ही प्रसन्न था।
एक दिन की बात है धनी के घर उसका कोई मित्र आया हुआ था तब धनी ने अपने मित्र से कहा मित्र तुम इस व्यक्ति से पूछ कर देखो तो सही इसका मेरे घर में नित्य प्रति झाड़ू लगाने का क्या प्रयोजन हैऋ
धनी के कहने पर मित्र ने झाड़ू लगाने वाले से पूछा तो उसने धन व्यक्ति ने उत्तर दिया श्रीमान जी धनी सेठ का घर है। कभी ना कभी तो इस की धूल से मेरी किस्मत जाग पड़ेगी
मैं देखना चाहता हूं कि संत पुरुषों द्वारा कही गई यह बात मेरे जीवन में कब सही होगी जब धनी ने अपने मित्र द्वारा निर्धन व्यक्ति के इन विचारों को सुना तब वह मन में बहुत प्रसन्न हुआ।
कुछ समय बीतने पर उसने एक हीरा डाल दिया वह हीरा सफाई करते समय जब उस निर्धन व्यक्ति को मिला तो उसने अपनी सज्जनतावश वह हीरा उस धनी को वापस कर दिया ्लेकिन धनी तो पहले से ही ईमानदार से प्रभावित था। अति प्रसन्नता वश उसने हीरा वापस नहीं लिया यद्यपि झाड़ू लगाने वाले ने देने का बहुत प्रयत्न किया हीरा मिल जाने पर भी उस व्यक्ति ने धनी के घर आना नहीं छोड़ा। पहले की तरह वह सफाई करता रहा कुछ समय बीतने पर ,एक दिन उसी मित्र द्वारा पूछा कि अब झाड़ू देने वाले के मन में कौन सी इच्छा शेष हैऋ
धनी के मित्र द्वारा पूछने पर उस व्यक्ति ने नम्रता व श्रद्धा से उत्तर दिया श्रीमान इच्छाएं तो मेरी सभी पूर्ण हो चुकी है मात्र एक ही अमूल्य हीरा पाने से इस प्रकार में कुछ का कुछ बन गया हूं उनके उपकार का में ऋणी हूंऋ परंतु अब मैं इनकी उपकारिता वह महानता के कारण इनके घर को झाड़ता हूं।
जिनके घर केवल झाड़ू लगाने से ही मैं मालामाल हो गया तो क्या अब मैं यह सेवा का कार्य छोड़ दूं ऐसा कभी नहीं हो सकता
दौलतमंद ने जब मित्र द्वारा दूसरी बार भी उसका श्रद्धा से पूर्ण संवाद सुना तो पहले से भी बढ़कर प्रसन्न हुआ और उसे अपना हितेषी जानकर अपने पास रख लिया अब वह प्रत्येक कार्य करने से पहले उसकी सलाह अवश्य लेता। फलित है उस धनी सज्जन की संगति प्राप्त होने से वे झाड़ू देने वाला निर्धन व्यक्ति भी नगर में धनाढ्य सेठ जाता सुप्रसिद्ध हो गया।
यह दृष्टांत हमें सिखाता है परमार्थ के मार्ग पर प्रेम भक्ति की दौलत प्राप्त करनी हो तो वह मात्र समय के संत सतगुरु की सेवा द्वारा ही प्राप्त कर सकता है जब सद्गुरु सेवक के श्रद्धा भाव को देखकर उस पर प्रसन्न हो जाते हैं तब उसे भक्ति रूपी रत्न देकर मालामाल कर देते हैं और सेवक को चिंता मुक्त बना देते हैं सच्चे सेवक भक्ति के अनूठे धन को पाकर भी अपने इष्ट देव का उपकार माना करते हैं और उनके चरणों के प्रति असीम श्रद्धा दिन प्रतिदिन रखते हैं और उसका दामन कभी नहीं छोड़ते ऐसे श्रद्धालु सेवकों का नाम इतिहास में अमर हो जाया करता है।
निष्काम भाव से करी गई सेवा हमारे जीवन का उद्धार करती है और एक न एक दिन फलीभूत हो जाती है। सेवा की अपनी अलग ही महत्व है कभी किसी की करी हुई सेवा निष्फल नहीं जाती हमें उसका फल अवश्य मिलता है चाहे किसी भी रूप में मिले ऐसा मेरा अनुभव है।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा