बिन मेंहदी सब वृथा बेकार।
श्रावण मास की अवदात बयार ,
रिमझिम मेघ की फुहार,
दमक रहा विद्युत कंकण,
इन्द्रधनुषी क्षितिज,पुलकित मन,
हरा आवरण ढका वसुधा का तन,
स्निग्ध पात मेंहदी की पिसकर,
लाली दे सुहाग बढ़ातीं,
परदेसी पिया का संदेश लातीं।
परिमल तन ,हृदय स्पन्दन ,
मेंहदी का चटख रंग बढ़ाता यौवन।
स्वयं का अस्तित्व मिटाकर,
करतल का बढ़ा देती रंग।
हथेलियों पर उमड़े सावन,
बारिश ,हरियाली, मेघ,फुहार ,
मेंहदी में घुलकर बने सम्पूर्ण प्यार।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)