गीतिका

संस्कारों के फूल खिलाएँ।

सुंदर  घर- संसार बनाएँ।।

मान रहे जिस घर में सबका,

ऐसा हम परिवार बसाएँ।।

भाग दौड़ की रही जिंदगी।

फुर्सत का रविवार मनाएंँ।।

हंँसते- गाते रहें हमेशा।

जीवन से सब, खार हटाएँ।।

हाथ जोड़कर मिल लें सबसे,

अच्छा ही व्यवहार बनाएंँ।।

मानव जीवन जब यह पाया।

भक्ति भाव से पार लगाएंँ।।

गूंँथ- गूंँथ कर भाव सुमन सब।

मांँ शारद को हार  पहनाएँ।।

रूठ गया है जो भी हमसे

वीनू चलकर उसे मनाएँ।।


वीनू शर्मा

जयपुर राजस्थान