किस जहाँ में डाला है डेरा
कब रात हुई कब हुआ सवेरा
सदियाँ बीत गईं पर तुम न आए
क्या कहीं घूम रहे बन के सपेरा
पथराई आंखे दर्शन को तरसें
बिन मौसम बदरी बन के बरसें
चाहत में तेरी रो रो दिन बिताए
आजाओ प्रीतम सहारा दो कर से
जब मुझे किसी सहारे की आस थी
अपने हुए पराए की दिल में टीस थी
कोई आए अजनवी बन कर ही सही
बुझा दे जो विरही दिल में लगी प्यास थी
जिसको अपना माना वह तुम और तुम
बनाया जिसने बेगाना कोई और नहीं तुम
वायदा करो सच्चे साथी का धर्म निभाएंगे
आओ मिलजुल फिर से सरकार बनाएं हम
बच्चूलाल दीक्षित
दबोहा भिण्ड/ग्वालियर