मां का मुखड़ा केसा भी हो, सुंदर लगता हैं।।
दुनियां है मां बिन सुनी।
गुणी जन से बात गुणी।।
मां की गोद है पहली।
बच्चे से बहले पगली।।
मां जग का प्रथम,सुंदर मंदर लगाता है।
मां का रूप केसा भी हो, सुंदर लगता हैं।।
बचपन है, मां से सुंदर।
राजा कभी कहे बंदर।।
टीका लगा लाड़ लड़ाती।
ममता ओ प्यार लुटाती।।
बच्चे को मां,गगन का, चंदर लगता हैं।
मां का रूप केसा भी हो, सुंदर लगता हैं।।
दुख उठा खुश होती हैं।
अपनी इच्छा खोती हैं।।
बच्चा जीवन धन होता।
बच्चा ही मधुबन होता।।
बेटे को जीवन, मां के, अंदर लगता है।
मां का रूप केसा भी हो, सुंदर लगता हैं।।
पीड़ा सह कर सृजन करती।
दुख को सुख में वरन करती।।
जीवन जिए बच्चे के नाम।
माता तुझे लाखों प्रणाम।।
माता का व्यवहार अथाह समंदर लगता है।
मां का रूप केसा भी हो,सुंदर लगता है।।
बच्चो के हित में रोती।
बच्चों के हित में हसती।।
कभी दुर्गा कभी काली।
कभी बच्चो की माली।।
बच्चे हित लड़े वो दुर्गा का मंजर लगता है।
मां का रूप केसा भी हो,सुंदर लगता है।।
कवि मनोहर सिंह चौहान मधुकर
जावरा जिला रतलाम मध्य प्रदेश