न माने बंधन,न हार जीत।
जात पात,ऊंच नीच से परे,
दृग आलय में बसे सिर्फ मीत।
प्रीत से जीवन ये निर्मित,
रिश्तों के अवगुंठन से पुलकित।
प्रीत बिन झूठा जग सारा,
प्रीत सप्तसुरों का संगीत।
प्रीत की खुशियां आशातीत,
विरह में भी मुस्काये याद कर अतीत।
मुकुर दिखाये मंजु छवि प्रीतम की,
उर वेदना,अधर सस्मित।
नयनों में चमक और होठों पर गीत,
मन मुग्ध देख निज आकृत।
प्रीत ही मीरा प्रीत ही राधा,
त्याग उपासना से फलीभूत।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)