महाराणा प्रताप प्रतापी राजा था,
घोड़ा चेतक हवा से बातें करता l
अधीनता बिल्कुल भी पसंद न थी,
युद्ध की स्थिति उन्हें मंजूर थी l
जन्म नौ मई पंद्रह सौ चालीस,
स्थान है मेवाड के बल्लभगढ़ l
माता का नाम जयंती बाई था,
पिता उनके उदय सिंह द्वितीय l
भरा था जोश विजय का जब,
तो भला कैसे चुप बैठ जाते वह l
प्रातः स्मरणीय महान स्वाभिमानी,
क्षत्रिय कुलभूषण वीर शिरोमणि l
महाराणा की सेना बड़ा बलशाली,
परिवार ने घास की रोटी खायी थी l
गढ़ जीतते रहे महाराणा निरंतर,
चैन नहीं महाराणा को पलभर l
हल्दीघाटी का युद्ध है स्वर्ण अक्षरी,
साथ मे उनके थे हकीमखान सूरी l
अकबर की युद्ध की न थी इच्छा,
पर महाराणा के मन युद्ध था बसा l
ज़बानी का जो देश का हित न हो,
वो धर्म का जब इंसानियत न हो l
वीर कुंवर प्रताप नाम निराला है,
दृढ़ इच्छा हो तो शत्रु घबराता है l
नाम मान सम्मान और स्वाभिमान,
नर वही है जो आये देश के काम l
संघर्ष किए युद्ध किए उस वीर ने,
पर न मानी हार उस प्रतापी वीर नेl
उन्नीस जनवरी पंद्रह सौ सत्तानवे,
महाराणा हो गए ईश्वर को प्यारे l
स्वर्ण अक्षर हो गया मान न खोया ,
अकबर भी वीर की मृत्यु पर रोयाl
शत शत नमन
पूनम पाठक "बदायूँ "
बदायूँ उत्तर प्रदेश